विकासशील देशों के मुकाबले विकसित देशों के लोग ज्यादा उत्सर्जित करते हैं कार्बन, जानिए क्या कहती है रिपोर्ट
काउंसिल ऑन एनर्जी इनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) के नए अध्ययन के अनुसार कई विकसित देशों में औसत आय वाले व्यक्ति का कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन अर्जेंटीना ब्राजील भारत और आसियान क्षेत्र जैसे विकासशील देशों के शीर्ष 10 प्रतिशत अमीरों में शामिल व्यक्ति के कार्बन उत्सर्जन से कहीं ज्यादा है। अध्ययन ‘द इमीशन डिवाइड इनएक्विलिटी एक्रॉस कंट्रीज एंड इनकम क्लासेज’ के अनुसार जब हम सबसे गरीब आबादी की तुलना करते हैं
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। काउंसिल ऑन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) के नए अध्ययन के अनुसार, कई विकसित देशों में औसत आय वाले व्यक्ति का कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन अर्जेंटीना, ब्राजील, भारत और आसियान क्षेत्र जैसे विकासशील देशों के शीर्ष 10 प्रतिशत अमीरों में शामिल व्यक्ति के कार्बन उत्सर्जन से कहीं ज्यादा है। मंगलवार को जारी अध्ययन ‘द इमीशन डिवाइड: इनएक्विलिटी एक्रॉस कंट्रीज एंड इनकम क्लासेज’ के अनुसार, जब हम सबसे गरीब आबादी की तुलना करते हैं तो विकसित और विकासशील देशों के बीच उत्सर्जन की खाई बहुत ज्यादा स्पष्ट हो जाती है।
सऊदी अरब, अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया में कम आय वर्ग की 10 प्रतिशत आबादी में शामिल किसी भी व्यक्ति का कार्बन उत्सर्जन भारत, ब्राजील या आसियान क्षेत्र के सबसे गरीब वर्ग के व्यक्ति की तुलना में 6 से 15 गुना ज्यादा होता है। जब दुनिया भर के नेता ग्लोबल स्टॉकटेक (पेरिस जलवायु समझौते को लागू करने में देशों की प्रगति की वैश्विक समीक्षा) के लिए दुबई में 28वें जलवायु सम्मेलन (कॉप28) में जुट रहे हैं, CEEW का यह अध्ययन रेखांकित करता है कि विकसित देशों और चीन की तरफ से सतत जीवनशैली अपनाने और विकासशील देशों के लिए कार्बन स्पेस को बरकरार रखने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
वर्ल्ड इनएक्विलिटी डेटाबेस और विश्व बैंक के आंकड़ों पर आधारित सीईईडब्ल्यू के अध्ययन ने विकसित और विकासशील दुनिया के 14 देशों, यूरोपीय संघ (ईयू) और आसियान क्षेत्र में विभिन्न आय वर्गों के लिए प्रति व्यक्ति कार्बन डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन का विश्लेषण किया है। एक साथ मिलकर ये प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं लगभग 81 प्रतिशत वैश्विक उत्सर्जन, दुनिया के 86 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद और 66 प्रतिशत वैश्विक आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं।
इस अध्ययन में पाया गया है कि विकसित देशों और चीन के सर्वाधिक 10 प्रतिशत अमीर अध्ययन में शामिल सभी विकासशील देशों के कुल उत्सर्जन की तुलना में 22 प्रतिशत ज्यादा कार्बन डाई-ऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं।
डॉ. अरुणाभा घोष, सीईओ, सीईईडब्ल्यू ने कहा, “सीईईडब्ल्यू का अध्ययन स्पष्ट रूप से बताता है कि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में हो रही वृद्धि के लिए सभी एक समान रूप से जिम्मेदार नहीं है। कई विकासशील देशों में शीर्ष के 10 प्रतिशत अमीरों में शामिल व्यक्ति विकसित देशों के औसत आय वाले व्यक्ति की तुलना में काफी कम उत्सर्जन करते हैं।
यह एक बार फिर से ‘साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों’(सीबीडीआर) सिद्धांत के लिए वैज्ञानिक आधार प्रदान करता है, खासकर जब कॉप28 पुरानी प्रतिबद्धताओं और टूटे वादों को आईना दिखा रहा है। ये निष्कर्ष उत्तरदायित्व और दीर्घकालिक जलवायु वित्त की जरूरत की अनिवार्यता और तात्कालिकता को सामने रखते हैं। अब हम इस बात पर और बहस नहीं कर सकते हैं कि क्यों उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अपने सतत भविष्य को मजबूत बनाने के लिए कार्बन स्पेस या किफायती और सुविधाजनक वित्त की जरूरत है।
इसके अलावा, संसाधनों का ज्यादा सतर्कता के साथ उपभोग करने का कोई दूसरा तकनीकी विकल्प नहीं है। विकसित देशों को भारत के मिशन लाइफ की तरह सतत उपभोग को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए, जो पीपल (व्यक्तियों), प्रॉस्पेरिटी (संपन्नता) और प्लेनेट (धरती) के लिए वैश्विक परिवर्तनों को प्रेरित करने वाले व्यक्तिगत गतिविधियों को दिशा देता है।”
सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में यह भी पाया गया है कि सबसे अमीर व्यक्तियों के बीच कम कार्बन वाली जीवनशैली को बढ़ावा देकर कार्बन उत्सर्जन में काफी कटौती की जा सकती है। यदि विकसित देशों और चीन के शीर्ष के 10 प्रतिशत अमीर लोग अपने कार्बन फुटप्रिंट में आधी की भी कटौती कर लें तो वे सालाना 3.4 अरब टन से ज्यादा कार्बन डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन रोक सकते हैं।
इसके अलावा विकसित देशों और चीन के शीर्ष के 10 प्रतिशत अमीर लोगों पर कार्बन टैक्स लगाकर 500 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाया जा सकता है और इससे ज्यादा कार्बन-उत्सर्जन वाले उपभोग को हतोत्साहित भी किया जा सकता है। कार्बन टैक्स से मिलने वाली राशि को जलवायु परिवर्तन शमन, अनुसंधान और विकास (आरएंडडी), स्वच्छ प्रौद्योगिकी का जोखिम दूर करने और जलवायु जोखिम को सहने की क्षमता (लचीलापन) विकसित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
ऐसा करना बहुत जरूरी है, क्योंकि सीईईडब्ल्यू के एक अन्य अध्ययन से सामने आया है कि विकसित देश अपने 2030 उत्सर्जन कटौती लक्ष्य को पूरा करने के रास्ते पर नहीं हैं, उनका उत्सर्जन अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) से 38 प्रतिशत ज्यादा हो जाएगा।
पल्लवी दास, प्रोग्राम लीड, सीईईडब्ल्यू ने कहा, “जलवायु चर्चाओं में असमानता का एक लंबा इतिहास रहा है और विकसित देशों में संपन्न व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं। हमारे अध्ययन से पता चलता है कि भले ही 2008 और 2018 के दौरान अधिकांश देशों में सर्वाधिक आय वालों (शीर्ष 10 प्रतिशत) के लिए आय की उत्सर्जन तीव्रता में कमी आई हो, लेकिन आय बढ़ने के कारण कुल उत्सर्जन बढ़ रहा है। वैश्विक तापमान बढ़ोतरी को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए लगातार कम होते कार्बन बजट के साथ अमीरों को उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए और उन्हें सतत जीवन शैली अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए।”
सीईईडब्ल्यू के अध्ययन ने यह भी रेखांकित किया है कि विकसित और विकासशील देशों में कार्बन उत्सर्जन के लिए सर्वाधिक अमीर और सर्वाधिक गरीब आय वर्ग के बीच काफी ज्यादा असमानताएं मौजूद हैं। अध्ययन में शामिल देशों के शीर्ष और निम्न आय वर्गों के 10 प्रतिशत लोगों में कार्बन फुटप्रिंट का अंतर 8 से 22 गुना के बीच है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि उच्च आय वालों को कम कार्बन उत्सर्जन वाली जीवनशैली और जिम्मेदारीपूर्ण उपभोग को अपनाने के लिए ठोस प्रयास करने चाहिए।
इस अध्ययन में 'विकसित देशों (या क्षेत्रों) और चीन' में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, जापान, रूसी संघ, सऊदी अरब, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका और 'विकासशील देशों (या क्षेत्रों)' में अर्जेंटीना, ब्राजील, भारत, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और आसियान शामिल हैं।